रायगढ़/धरमजयगढ़। बारिश थम चुकी थी, लेकिन गाँव अब भी दलदल में कैद था। सड़क का नाम भर है—हकीकत में यह गड्ढों और कीचड़ से भरा रास्ता है, जिस पर कदम उठाना भी चुनौती। इसी टूटी-फूटी, फिसलनभरी पगडंडी से, ग्राम पंचायत विजयनगर के ग्राम कंडरजा मोहला पटना पारा का निवासी लक्ष्मण राम राठिया अपनी बीमार पत्नी तुलसी बाई राठिया को गोद में उठाकर पैदल अस्पताल ले गया।
धरमजयगढ़ के कंड राजा से पंडरा पाट जाने वाले रास्ते का हाल ऐसा था कि वाहन चलाना तो दूर, एंबुलेंस पहुँचना भी नामुमकिन था। मजबूरी में लक्ष्मण राम, बारिश और कीचड़ से जूझते हुए कई किलोमीटर पैदल कापू अस्पताल की ओर निकल पड़ा। यह नज़ारा किसी फिल्मी दृश्य का नहीं, बल्कि रायगढ़ जिले के सुदूर आदिवासी अंचल की कड़वी सच्चाई है—जहाँ 2025 में भी लोग पाषाण युग जैसी कठिन ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं।
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हजारों ग्रामीणों की यही कहानी
यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि उन हजारों ग्रामीणों का दर्द है जो हर मानसून में इस संकट से गुजरते हैं।
सड़कें दलदल में तब्दील
एंबुलेंस और स्वास्थ्य सुविधाएँ नदारद
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचना जान जोखिम में डालना
जब भी कोई बीमार पड़ता है, ग्रामीणों को खटिया, साइकिल या किसी के कंधों पर बिठाकर कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
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विकास के दावे, हकीकत के दलदल में
सरकारी भाषणों में कहा जाता है—
> “आदिवासी क्षेत्रों में विकास की गंगा बह रही है।”
“अंतिम व्यक्ति तक सुविधा पहुँचाना हमारी प्राथमिकता है।”
लेकिन कंडरजा, मोहल्ला पटना पारा जैसे गाँवों में न गंगा दिखती है, न सुविधा—सिर्फ़ कीचड़, बदबू और लापरवाही। यह हाल सिर्फ एक गाँव का नहीं, बल्कि पूरे रायगढ़ जिले के सैकड़ों गाँवों का है, जहाँ बारिश आते ही सड़कें ग़ायब हो जाती हैं और जीवन ठहर जाता है।
प्रशासन की चुप्पी
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि शिकायतें वर्षों से की जा रही हैं, लेकिन अब तक स्थायी समाधान नहीं मिला। सवाल यह है—क्या विकास के चमकते पोस्टर और ज़मीनी हकीकत के बीच का यह दलदल कभी पाटा जाएगा, या फिर आदिवासी अंचल हर साल इसी कीचड़ में धंसता रहेगा?
📌 रायगढ़ का यह दृश्य एक बार फिर साबित करता है—जब तक सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ गाँव तक नहीं पहुँचतीं, तब तक विकास सिर
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