मुंगेली । छत्तीसगढ़ के सबसे पुरानी परंपराओं में से एक यह गौरी- गौरा पूजन की शुरुआत धनतेरस के दिन से की जाती है। दिपावली की रात को धूमधाम से यह पर्व मनाया गया। दिपावली के अगले दिन यह गौरी गौरा का विसर्जन बड़ी धूमधाम से गाजे बाजे के साथ भक्त नाचते हुए नदी,में इनका विसर्जन किया गया। शहर में गौरा गौरी पर्व को विधि विधान से मनाया गया, जिसमें भक्तों ने धूमधाम के साथ गौरा गौरी का विसर्जन किया।गौरी गौरा भगवान शिव और पार्वती के प्रतीक हैं। यह पर्व छत्तीसगढ़ की पुरानी परंपराओं में से एक माना जाता है। इस पर्व की शुरुआत धनतेरस के दिन से होती है और दीपावली की रात को इसका आयोजन होता है। दीपावली के अगले दिन भक्त गाजे-बाजे के साथ गौरा गौरी का विसर्जन नदी और तालाबों में करते हैं। भक्त थिरकते हुए इस आयोजन में शामिल हुए जो छत्तीसगढ़ में अपनी एक अलग पहचान रखता है। मूलतः यह परंपरा आदिवासी समाज द्वारा शुरू की गई थी, लेकिन अब सभी समुदाय और जाति के लोग इसमें भाग लेते हैं। स्थानीय नागरिक श्री मारवी ने बताया कि “यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। भगवान शिव और पार्वती को गौरा गौरी के रूप में विधि विधान से पूजा जाता है. हमारा यह पर्व लगभग 115 वर्षों से मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की यह पुरानी परंपरा भगवान शिव और पार्वती के पारंपरिक विवाह पर आधारित है। सभी समुदाय के लोग इस उत्सव में शामिल होते हैं और इसे धूमधाम से मनाया जाता है।गौरा गौरी पर्व के अवसर पर लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।
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